MANJUSHA ART





The book understanding the importance of the idea of “ history at your doorstep” your book is indeed an excellent reality show of how a day-to-day local life and faith, art and culture can help contextualise properly a broader panorama of history in a global perspective. -A.K. Narain Emeritus professor of history and Languages and cultures of Asia, University of Wisconcin,Madison(USA) Faunder Director of BJK Institute of Buddhist and Asian Studies, Sarnath-Baranasi. MANJUSHA ART by Dr Rajiv kr sinha, University Professor, Archaeology, T M Bhagalpur University, bhagalpur (Bihar) Mob-09431296218 & Dr Om Prakash Pandey, Curator- Bhagalpur Museum, Bhagalpur (Bihar) Mob. - 09430425828



























बिहुला-विषहरी

सम्पूर्ण अंगक्षेत्र में अत्यंत प्रभावी ढंग से लोकगाथा के पारायण के साथ बिहुला विषहरी की पूजा एक लोक पर्व का रूप लेकर चल रही है और इसके माध्यम से विहुला की कथा के साथ जनमानस सती सावित्री की याद ताजा करता है। लोकगाथा की उपन्यासपरक प्रस्तुति इसी भौगोलिक-ऐतिहासिक क्षितिज को मापने का प्रयास है। बिहुला-विषहरी/ डा मीरा झा/ प्रकाशक- इण्डियन बुक मार्केट



































अंग संस्कृति: विविध आयाम
अंग षोडष महाजनपदों में सर्वोत्कृष्ट रहा है, जिनके भौगोलिक सीमा के अन्तर्गत तीन प्रसिद्ध राज्य था। भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति में यह वैदिक धर्म की धात्री भूमि बना, जिसका विवरण ब्राह्मण, जैन, एवं बौद्ध साहित्यों में वर्णित है। अंग की राजधानी चम्पा थी जो भागलपुर के समीप चम्पा का अतीत रह चुका है। प्रारम्भ से लेकर आज तक के संस्कृति को इतिहासकारों एवं साहित्यकारों ने अंग जनपद के सांस्कृतिक वैभव को स्वीकार किया तथा अपने अनुसंधान में विभिन्न स्रोतों के माध्यम से सूचनाएं दी है। इस जनपद की अपनी अलग पहचान है जिसकी भौगोलिक स्थिति और पारिस्थिकी ने साहित्य एवं संस्कृति को विशिष्ट स्वरुप प्रदान किया
लेखक:- डा राजीव कुमार सिन्हा, मो- 09431296218 डा ओम प्रकाश पाण्डेय, मो- 09430425828























EMINENT MUSLIMS OF BHAGALPUR

The book “Eminen’t Muslims of Bhagalpur” is a brief history of eminent Muslims who contributed a lot to the land. It is a thorough and methodical research work based on primary sources (Persian book and manuscripts) as well as secondary work by renowned historian This book gives vivid picture of the spread of Islamik culture, Islamik mysticsm, Sufi Saints as well as development of art & architecture in and around Bagalpur. The names of medieval mohalla, village, locality, libraries etc are given in details.
This book will enhance the knowledge of the reader and will surely enrich their thought.
EMINENT MUSLIMS OF BHAGALPUR By Syed Shah Manzar Husain, Alig. & Edited by Dr. Mukesh Kumar Sinha


























भाषा, साहित्य और संस्कृति


भाषा, साहित्य और संस्कृति तीनों सभ्यता के विकास-क्र्म के अनिवार्य उपादान हैं। भाषा अभिव्यक्ति का सम्पूर्ण माध्यम है, साहित्य मानवीय संवेदना का संस्कार करनेवाला रचनात्मक शब्द नियोजन है और संस्कृति मानवीय चेतना के संस्कार की निरंतर प्रक्रिया है। प्रस्तुत पुस्तक में भाषा, साहित्य और संस्कृति के अधीन डा बहादुर मिश्र ने इनके अंतर्सूत्रों को न केवल स्पष्ट किया है अपितु इसके माध्यम से अपनी परम्परा का पुनरवलोकन भी किया है।भाषा, साहित्य और संस्कृति/ लेखक- डा बहादुर मिश्र / समीक्षा प्रकाशन- दिल्ली/मुजफ़्फ़रपुर मो-09905292801





























प्राचीन चम्पा



“ प्राचीन चम्पा ” अंग जनपदीय पृष्ठ भूमि को स्पष्ट करते हुए उसके ऐतिहासिक एवं सांस्कृतिक परिदृश्य को उजागर करता है। साथ ही साथ इस खण्ड में चम्पा के वृह्तर सांस्कृतिक प्रसार को विशिष्टता के साथ दर्शाया गया है। चम्पा के प्राग-जीवन से लेकर मध्यकाल से पूर्व तक लगभग दस हजार वर्षों के ऐतिहासिक काल खण्डों तथा विभिन्न क्षेत्रों में विखरे पुरावषेशों की सामग्री के आधार पर विषय को प्रस्तुत किया गया है।



























अंग लिपि का इतिहास

अंग लिपि का इतिहास बौद्ध ग्रंथ “ ललित विस्तर “ में वर्णित चौसठ लिपियों में अंग लिपि क चौथा स्थान है। ब्राह्मी और खरोष्ठी के बाद अंग लिपि भारत की सर्वाधिक प्राचीन लिपि है। तत्कालीन सभी प्रचलित लिपियों में यह अधिक गतिशील रही है। इसने कई देशों की लिपियों को संवर्द्धित किया। इसमें श्रीलंका, पूर्व मध्य एशिया, तिब्बत, वर्मा, स्याम, जावा, मलय द्वीप, सुमत्रा, हिन्द चीन,कम्बोज आदि प्रमुख है। अंग लिपि को ही यह महान गौरव प्राप्त है कि उसके दुःसाहसिक नाविक, व्यापारी एवं राजवशियों ने उसे विभिन्न देशों की यात्रा ही नहीं करायी, बल्कि उसे कई देशों में स्थापित भी कर दिया। यह पुरा भारतीय इतिहास का गौरवोज्जवल पृष्ठ है। गुप्त लिपि, कुटिल लिपि, सिद्ध मातृका लिपि आदि को अंग लिपि की विकास यात्रा का पड़ाव कहना अधिक उपयुक्त है। कैथी लिपि में इनकी विकास यात्रा पूर्ण हो जाती है। अंग लिपि का इतिहास- हरिशंकर श्रीवास्तव “शलभ” मो-094310 80862